Check Mate!

हम दोनों को ही पहेलियाँ बहुत पसंद थी । सुडोकु, क्रॉसवर्ड, शतरंज...इन जैसे खेलों में हम दिन-भर अपना दिमाग लगा सकते थे । ऐसा भी कह सकते हैं कि हमें वो चीज़ें पसंद थी जिनमें हमारा दिमाग इस्तेमाल होता है और दिल नहीं । दिल लगाना हमने नहीं सीखा और किसी ने सिखाया भी नहीं... Continue Reading →

क्या फ़र्क़ पड़ता है?

मैं क़रीब एक घंटे से इटारसी स्टेशन पर उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने कहा था कि वो पहुँच जाएगी, मैं चिंता न करूँ। मैं चिंता कर रहा था। उसका फोन बंद बता रहा था। 15 मिनट बाद ट्रेन आने वाली थी जो हमें बनारस लेकर जाएगी। मैं मेनगेट पर खड़ा होकर उसका इंतज़ार कर... Continue Reading →

Train of Thoughts!

जनरल डिब्बे में सफर करना एक अलग एहसास को जन्म देता है। कुछ हफ्ते पहले जनरल डिब्बे में सफर करने का फिर एक मौका आया। उस वक़्त जो कुछ भी नज़रों के सामने दिखा सो लिख डाला ― 1. एक व्यक्ति के फ़ोन में रिचार्ज खत्म हो चला है। वो अपनी बेटी की तस्वीर को... Continue Reading →

नेमप्लेट

मेरा मैं,कसमसा उठा ।मानो घिसे बर्तन कोईंट से रगड़ दिया ।चरमराकर,पेड़ से फ़ना टूट गया, संवेदना की पत्ती नदी में बह गई, बस... दर्द रह गया । ‘कुछ लोग बस दुनिया में बस इसलिए जिंदा हैं, क्योंकि उनको मारना कानूनन अपराध है ।’ मुख्यतार शर्मा को पता था कि यह ताना उसके लिए ही कसा... Continue Reading →

सच में?

"एक बोल एक""एक""तेरी चड्डी में केक"बड़े लम्बे समय के बाद ये तुकबंदी दोबारा सुनाई दी । मंदिर जाते हुए गली के छोटे-छोटे बच्चे पेड़ की छाया में बैठकर आपसी गप्पों में व्यस्त थे । अगर आप भी इस तुकबंदी के दस तक की सहनानी से परिचित हैं तो बधाई हो! आपका बचपन उतना भी बुरा... Continue Reading →

10 सेकण्ड की बेशर्मी

पसीने की महीन बूँदें मेरे माथे पर झलक रहीं थी। हवा अपने उद्वेग पर थी। बारीक रेत के कण उस हवा के हाँथ थामे इधर-उधर नंगी आँखों को अपना शिकार बना रहे थे। लेकिन इस सब से बेफ़िक्र सभी लोग उंगलियाँ मुँह में दाबे हमारे रोमांचक क्रिकेट मैच को देख रहे थे। कुछ देर के... Continue Reading →

उड़ता पलंग

मैं अपने पलंग पर लेटा हुआ था कि तभी पलंग के पैरों में कोई अदृश्य थिरकन सी हुई। मेरी नींद खुल गयी और मैंने देखा कि धीरे-धीरे ज़मीन और पलंग का संपर्क टूटते जा रहा है। पहले मुझे लगा कि ये कोई भूकम्प है लेकिन ध्यान से देखा तो पता चला ― मैं उड़ रहा... Continue Reading →

बच्चे

छोटे बच्चों को गोद में लेना एक अनजानी जगह पर यात्रा करने जैसा होता है। वहाँ बहुत कुछ मिल जाता है। कितने सुंदर होते हैं वो लोग जिन्हें दुनियादारी नहीं आती और जो विश्व के 'समझदारों' की परिभाषा में फिट नहीं बैठते। किसी बच्चे को गोद में लेने पर मेरा सबसे पहला भाव ईर्ष्या होती... Continue Reading →

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दफ्तर में लोग उस गाँव के बारे में तरह-तरह की अफवाहें उड़ा रहे थे कि "वहाँ की कब्रें साँस लेती हैं", "वहाँ से कोई लौटकर नहीं आता", "वहाँ पर दिन की रौशनी नहीं पड़ती क्योंकि वहाँ मौत का घना साया है।" शर्माजी को तो वैसे भी चटपटी बातों में और नमक मिर्च लगाने की पुरानी... Continue Reading →

दादी की कहानी

“बात काफ़ी पुरानी है। सारे जहाँ में आज भी दादी की कहानियाँ प्रख्यात थी। नहीं, नहीं उनका कोई विशेष श्रोता नहीं था, वो कहानी दादी के कोमल हृदय से सिर्फ अपने पोते, विचित्र के लिए निकलती थी। दादी की कहानी की नींद की गोली जब तक विचित्र के अंतरंग में न जाए, तब तक नींद... Continue Reading →

टूटते तारे

मेरी अपने पिता के साथ कुछ ख़ास स्मृतियाँ नहीं है। केवल चार-पाँच छोटी-बड़ी धुँधली-सी स्मृतियाँ हैं जो समय-बीतते विस्मृत होने लगी हैं। एक बार जब उन्होंने मुझे आठ बार बाजार भेजा था, अलग-अलग मसाले लाने क्योंकि उनको परांठे बनाने थे। एक बार जब हम दोनों ने रात को तीन बजे तक इंडिया और ऑस्ट्रेलिया का... Continue Reading →

बड़े

बड़ा होना, किसी भारी चट्टान के नीचे दबा रहने जैसा एहसास है। चौबीस घंटे आपको किन्हीं ज़िम्मेदारियों के पगतले दबा रहना पड़ता है। या फिर गधे की तरह उनको ढोना पड़ता है। अब समझ आया कि बच्चे इतने फुर्तीले और चुस्त क्यों होते हैं! उनके पास कुछ सोचने, विचारने और ढोने को नहीं होता। ज़िम्मेदारी... Continue Reading →

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