Check Mate!

हम दोनों को ही पहेलियाँ बहुत पसंद थी । सुडोकु, क्रॉसवर्ड, शतरंज...इन जैसे खेलों में हम दिन-भर अपना दिमाग लगा सकते थे । ऐसा भी कह सकते हैं कि हमें वो चीज़ें पसंद थी जिनमें हमारा दिमाग इस्तेमाल होता है और दिल नहीं । दिल लगाना हमने नहीं सीखा और किसी ने सिखाया भी नहीं... Continue Reading →

Train of Thoughts – 3

जनरल डब्बे में सफर करने का सौभाग्य आज बहुत दिन बाद मिला। इस सुअवसर पर जो भी दिखा और मन में आया वो लिख लिया ― 1. एक युवक साइड खिड़की वाली सीट पर बैठा हुआ है। उसने दायीं आँख के पास "माँ" नाम का टैटू गुदवा रखा है। सीट क्लियर न होने पर उसे... Continue Reading →

क्या फ़र्क़ पड़ता है?

मैं क़रीब एक घंटे से इटारसी स्टेशन पर उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने कहा था कि वो पहुँच जाएगी, मैं चिंता न करूँ। मैं चिंता कर रहा था। उसका फोन बंद बता रहा था। 15 मिनट बाद ट्रेन आने वाली थी जो हमें बनारस लेकर जाएगी। मैं मेनगेट पर खड़ा होकर उसका इंतज़ार कर... Continue Reading →

छोटी-छोटी बड़ी कहानियाँ – 2

बौआ कक्का कुण्डलपुर, बिहार का एक प्रमुख जैन-तीर्थ है क्योंकि वहाँ भगवान महावीर का जन्म हुआ था । हम दो दिनों के लिए कुण्डलपुर में रुकने वाले थे इसलिए गैस और स्टोव की आवश्यकता थी । मैनेजर से बोलने पर उन्होंने किसी बौआ कक्का को आवाज़ दी । तुरंत ही पास वाले बगीचे से एक... Continue Reading →

मैं

आईने में हर रोज़ मैं उसे देखता हूँ जिसे मैं सबको दिखाना चाहता हूँ। मुझे कभी वो दिखता ही नहीं, जिसे मैंने आजतक ख़ुद से छुपा कर रखा। जो कभी आईने की गहराइयों में छुप जाता है, तो कभी देह की चमड़ी की सकरी परतों में। जिसे मैं सबको दिखा देता हूँ, उसपर मुझे बेहद... Continue Reading →

Train of Thoughts – 2

यह असलियत से भागने की एक और रिरियाती नाकाम कोशिश है। अभी तक मैं कुछ ज़्यादा सोचने के मूड में आया नहीं हूँ लेकिन मुझे उम्मीद है कि दिन के अंत तक कुछ अच्छा निकल कर आ जायेगा। ट्रेन के सफ़र अब भी बिल्कुल ट्रैन के सफ़र की तरह ही हैं। वही थके और बुझे... Continue Reading →

नाम, इज़्ज़त और भ्रम

...तो ये सारा झंझट चालू हुआ जून की उस रात को जिस दिन उसका जन्म हुआ और उसको एक नाम दे दिया गया। 50-60 वर्ष के उस छोटे से जीवन में वो जिस नाम से जानी जाएगी वो उसको किसी और ने दे दिया। अरे! कम से कम एक बार डिसकस तो करना चाहिए यार!... Continue Reading →

Train of Thoughts!

जनरल डिब्बे में सफर करना एक अलग एहसास को जन्म देता है। कुछ हफ्ते पहले जनरल डिब्बे में सफर करने का फिर एक मौका आया। उस वक़्त जो कुछ भी नज़रों के सामने दिखा सो लिख डाला ― 1. एक व्यक्ति के फ़ोन में रिचार्ज खत्म हो चला है। वो अपनी बेटी की तस्वीर को... Continue Reading →

चाँद और मैं

कभी-कभी किसी शाम को दिल इतना तनहा होता है कि किसी का पास बैठना भी देता है तनहाई को कुछ और हवा । ऐसी शामों में चाँद तुम क्या करते है? तुम तो शीतलता के लिए प्रसिद्ध हो? फिर कुछ करते क्यों नहीं? चुप क्यों हो? चाँद, फिर तुम उस शाम क्यों नहीं बन जाते... Continue Reading →

नेमप्लेट

मेरा मैं,कसमसा उठा ।मानो घिसे बर्तन कोईंट से रगड़ दिया ।चरमराकर,पेड़ से फ़ना टूट गया, संवेदना की पत्ती नदी में बह गई, बस... दर्द रह गया । ‘कुछ लोग बस दुनिया में बस इसलिए जिंदा हैं, क्योंकि उनको मारना कानूनन अपराध है ।’ मुख्यतार शर्मा को पता था कि यह ताना उसके लिए ही कसा... Continue Reading →

सच में?

"एक बोल एक""एक""तेरी चड्डी में केक"बड़े लम्बे समय के बाद ये तुकबंदी दोबारा सुनाई दी । मंदिर जाते हुए गली के छोटे-छोटे बच्चे पेड़ की छाया में बैठकर आपसी गप्पों में व्यस्त थे । अगर आप भी इस तुकबंदी के दस तक की सहनानी से परिचित हैं तो बधाई हो! आपका बचपन उतना भी बुरा... Continue Reading →

10 सेकण्ड की बेशर्मी

पसीने की महीन बूँदें मेरे माथे पर झलक रहीं थी। हवा अपने उद्वेग पर थी। बारीक रेत के कण उस हवा के हाँथ थामे इधर-उधर नंगी आँखों को अपना शिकार बना रहे थे। लेकिन इस सब से बेफ़िक्र सभी लोग उंगलियाँ मुँह में दाबे हमारे रोमांचक क्रिकेट मैच को देख रहे थे। कुछ देर के... Continue Reading →

Start a Blog at WordPress.com.

Up ↑