Perfect Days / Komorebi

'Komorebi' - एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है - 'पत्तियों के बीच से झाँकती हुई सूर्य-किरणें' किन्तु यह शब्द बस इतने पर ही न सिमटकर एक व्यापक अर्थ का द्योतक है। जैसे पत्तियों के बीच से झाँकती वह एक किरण अपने आप में कितनी छोटी और मामूली-सी लगने वाली वस्तु है किन्तु फुर्सत से... Continue Reading →

कोडईकनाल यात्रा

"हिल-स्टेशन अकेला कौन जाता है यार?" "अकेले क्या मज़ा आएगा?" "तुम्हारी तस्वीर कौन लेगा वहाँ?" ऐसे और भी प्रश्न हैं जो अन्य लोगों से ज़्यादा मैंने ही स्वयं से अधिक बार पूछे । घर से निकलने से लेकर बस में बैठने तक आपा-धापी में इस बात का एहसास नहीं हुआ । इस बात का एहसास... Continue Reading →

Check Mate!

हम दोनों को ही पहेलियाँ बहुत पसंद थी । सुडोकु, क्रॉसवर्ड, शतरंज...इन जैसे खेलों में हम दिन-भर अपना दिमाग लगा सकते थे । ऐसा भी कह सकते हैं कि हमें वो चीज़ें पसंद थी जिनमें हमारा दिमाग इस्तेमाल होता है और दिल नहीं । दिल लगाना हमने नहीं सीखा और किसी ने सिखाया भी नहीं... Continue Reading →

छोटी-छोटी बड़ी कहानियाँ – 2

बौआ कक्का कुण्डलपुर, बिहार का एक प्रमुख जैन-तीर्थ है क्योंकि वहाँ भगवान महावीर का जन्म हुआ था । हम दो दिनों के लिए कुण्डलपुर में रुकने वाले थे इसलिए गैस और स्टोव की आवश्यकता थी । मैनेजर से बोलने पर उन्होंने किसी बौआ कक्का को आवाज़ दी । तुरंत ही पास वाले बगीचे से एक... Continue Reading →

Train of Thoughts – 2

यह असलियत से भागने की एक और रिरियाती नाकाम कोशिश है। अभी तक मैं कुछ ज़्यादा सोचने के मूड में आया नहीं हूँ लेकिन मुझे उम्मीद है कि दिन के अंत तक कुछ अच्छा निकल कर आ जायेगा। ट्रेन के सफ़र अब भी बिल्कुल ट्रैन के सफ़र की तरह ही हैं। वही थके और बुझे... Continue Reading →

सच में?

"एक बोल एक""एक""तेरी चड्डी में केक"बड़े लम्बे समय के बाद ये तुकबंदी दोबारा सुनाई दी । मंदिर जाते हुए गली के छोटे-छोटे बच्चे पेड़ की छाया में बैठकर आपसी गप्पों में व्यस्त थे । अगर आप भी इस तुकबंदी के दस तक की सहनानी से परिचित हैं तो बधाई हो! आपका बचपन उतना भी बुरा... Continue Reading →

बहुत दूर कितना दूर होता है : एक समीक्षा

किताब : बहुत दूर कितना दूर होता है लेखक : मानव कौल प्रकाशक : हिन्दी युग्म ‘समीक्षा’ ― ये शब्द ही मुझे अत्यंत ओछा प्रतीत होता है, ख़ासकर इस अद्भुत किताब के लिए। इस किताब की सुंदरता का वर्णन करने के लिए दिल में इतना कुछ है कि मैं लिखते-लिखते थकूँगा नहीं। जब ये किताब... Continue Reading →

बिखरे मोती

1. मैं जादूगर नाकारा हूँ! बन जाता हूँ मैं हास्य-पात्र। अपने बेढंगे जादू से, गायब सब कुछ कर लेता हूँ, वापस उनको जीवन्त करूँ? यह सोच, स्वयं से हारा हूँ! मैं जादूगर नाकारा हूँ । 2. वो माँगता रहा, मैं भरता रहा पल-पल हर क्षण, मैं मरता रहा। वो आश-कूप, वो इक्ष-कुण्ड सब पाकर भी,... Continue Reading →

घर? मकान?

जब-जब भी मैं नीले आसमान में श्रेणी-बद्ध इन छोटी-बड़ी इमारतों को देखता हूँ तो बस ज़हन में एक ही ख़्याल पहली बेंच पर बैठे पढ़ाकू बच्चे की तरह उछल के मेरे सामने आता है कि अगर गलती से भी इन रंग-बिरंगे घरों में जान होती तो ये हमसे कितना नाराज़ होते! कितने प्रेम और सहृदय... Continue Reading →

ट्रैन

सारी ज़िन्दगी हम आँखें मूँदे उस ट्रैन का इंतज़ार करते रहते हैं कि कभी तो वो ट्रैन आएगी जो हमे हमारे सपनों के करीब ले जाएगी। जब आँखें खोलकर देखते हैं तो पता लगता है कि हम पहले से ही किसी दूसरी ट्रैन पर सवार हैं जिसका दूर-दूर तक हमारी सपनों की दुनिया से कोई... Continue Reading →

युद्ध

"विश्व का सबसे भयानक युद्ध किसके बीच हुआ था?" "दिल और दिमाग के बीच..." "और जीता कौन था?" "दिमाग। हमेशा की तरह।" "अरे! सब ठीक हो जाएगा। डरो मत।" "ठीक? ठीक तो सब है ही। ठीक रहना तो दिमाग से जीने का ही परिणाम है। मुझे ठीक से कुछ अलग चाहिए। मुझे हर पल का... Continue Reading →

ग्वालियर के टेम्पो

कभी-कभी लगता है, कि ज़िन्दगी ग्वालियर में चलने वाले पीले और हरे टेम्पो की तरह हो गयी है। आगे वाले को पकड़ने भागो तब तक पीछे वाला छूट जाता है। हम भी तो उन आठ-दस यात्रियों के सपनों का बोझा अपने ऊपर लादकर चलते हैं, समय और दस्तूर पाकर सब अपनी अपनी मंज़िल उतर जाते... Continue Reading →

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